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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष पर अपने प्रियजनों को बधाई दी अशोक प्रधान

नोएडा। जन्मजात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं चार बार खुर्जा लोकसभा क्षेत्र से सांसद रहे अशोक प्रधान ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष पर जहां अपने प्रियजनों को बधाई दी वहंी उन्होंने एक विशेष मुलाकात के दौरान विचार व्यक्त करते हुए कहा की जटिलता भरे हुए 100 वर्ष अवश्य पूरे कर लिए हैं किंतु अब हम बेहद संवेदनशील दौर से गुजर रहे हैं जहां हमें अपने सामंजस्य को बनाने के लिए प्रयास करने होंगे। उन्होंने संघ के स्वयंसेवकों एवं भाजपा नेताओं के बीच तालमेल में कमी आने पर चिंता व्यक्त की है।

श्री प्रधान के पिता स्वर्गीय मंगतराम जी दिल्ली के घड़ौली गांव में रहते थे। स्वर्गीय मंगतराम जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नीतियों से खासा प्रभावित थे और उन्होंने अपने बच्चों को वही संस्कार देने का काम किया उनके बड़े सुपुत्र स्वर्गीय ज्ञानचंद जी 1967 में पहली बार विधायक बने, उनमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कार कूट-कूट कर भरे हुए थे और दिल्ली प्रदेश में उन्होंने जनसंघ के माध्यम से संघ की गतिविधियों को आगे बढ़ाने का काम किया। आज अशोक प्रधान की चौथी पीढ़ी संघ के स्वयंसेवक अभिषेक प्रधान के रूप में मौजूद है जो राष्ट्रसेवा भाव में आज भी तत्पर बने रहते हैं। अभिषेक प्रधान को विश्व युद्ध जैसे हालातो पर अपने पिता अशोक प्रधान के साथ चिंता व्यक्त करते हुए मैंने स्वयं देखा है। अभिषेक को मैंने जब वह लगभग 5 वर्ष के थे तब देखा था शनिवार को 23 वर्ष बाद मैंने युवावस्था में जब देखा तो उस बालक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कार प्रचुर मात्रा में मौजूद थे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष पूरे होने पर जब हमने पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सांसद अशोक प्रधान से चर्चा का सिलसिला जारी किया तो उन्होंने बेहद भावुक होते हुए हमें पूरी जानकारी उपलब्ध कराई। उन्होंने हमें बताया कि संघ के 100 वर्ष पूरे होने और दुनिया का सबसे बड़ा संगठन होने के पीछे सबसे बड़ा कारण उसकी प्रचारकों का सेवा भाव है। उन्होंने संघ के प्रचारकों की तुलना एक महान संत एवं तपस्वी के रूप में की। श्री प्रधान ने हमें एक रोचक जानकारी देते हुए बताया कि संघ के प्रचारक अपना वस्त्र रगड-़ रगड़ कर इसलिए नहीं धोते थे कि वह जल्दी नष्ट हो जाएगा। उन्होंने यह भी हमें भावुकता भरे अंदाज में बताया कि संघ के स्वयंसेवक 365 दिन में 170 दिन भूखे ही जमीन पर सो जाते थे। श्री प्रधान द्वारा दी जा रही इस जानकारी के दौरान उनका कंठ भारी हो चुका था और आंखें सजल हो गई थी। इसी दौरान उन्होंने सन 1975 में अपने बड़े भाई पूर्व विधायक ज्ञानचंद की जेल यात्रा का भी जिक्र किया। अशोक प्रधान के अनुसार उन्होंने अपने बड़े भाई में ही अपने स्वर्गीय पिता को देख लिया था और उन्हीं से वह सदैव प्रेरित रहे। बड़े भाई की मंशा के अनुसार उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। किंतु उनका स्वयंसेवक का भाव अटल जी सरकार तक सदैव बना रहा। अशोक प्रधान स्वयंसेवकों से अलग होकर स्वयंसेवक की भांति ही बात करते थे। श्री प्रधान ने संघ के स्वयंसेवकों को कभी निराश नहीं किया। उनका कहना है कि वह खुद एक स्वयंसेवक रहे हैं उन्होंने स्वयंसेवकों के दर्द को बड़ी नजदीकी से महसूस किया है। श्री प्रधान ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं भारतीय जनता पार्टी के मध्य सामंजस्य का अभाव आना गंभीर चुनौतियों को दर्शाता है। उन्होंने कहा जहां शताब्दी वर्ष पूर्ण होने की हमें प्रसन्नता है वहीं बेहद संवेदनशील दौर में प्रवेश करना भी हमें किसी चुनौती से कम नहीं है। उनका कहना है कि राजनीति और राष्ट्र सेवा आज के परिदृष्य में दो अलग-अलग क्षेत्र हैं। श्री प्रधान के अनुसार जहां राजनीति में कूटनीति की समावेशी होती है वहीं राष्ट्र सेवा में भावनात्मक संभाव होता है। श्री प्रधान के अनुसार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कोई भी स्वयंसेवक किसी से कोई अपेक्षा की भावना नहीं रखता है और उसे रखनी भी नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कोरोना काल के बाद बहुतसे परिवार पीड़ा के दौर से गुजर रहे हैं ऐसे परिवारों की जनप्रतिनिधियों को उनकी चिंता करनी चाहिए। ऐसी परिवारों की यथासंभव मदद भी करनी चाहिए। श्री प्रधान ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों एवं भाजपा के जनप्रतिनिधियों के बीच बढ़ रही दूरियों पर गहरा असंतोष व्यक्त करते हुए चिंता व्यक्त की है। उनका मानना है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बिना हमारा उद्देश्य अधूरा होगा।

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