हेल्थकेयर CSR कैटलिस्ट मीट 2025 में स्वास्थ्य सेवा में क्रांति लाने के लिए विशेषज्ञों ने CSR रणनीतियों में बदलाव की वकालत की l

नई दिल्ली, 24 जनवरी 2025: भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में बदलाव लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए ‘हेल्थकेयर CSR कैटलिस्ट स्टेकहोल्डर्स मीट 2025’ का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों, कॉर्पोरेट जगत के अधिकारियों और सामुदायिक कार्यकर्ताओं ने स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और वितरण में मौजूद कमियों को दूर करने के लिए आवश्यक रणनीतियों पर चर्चा की। “गैप्स टू ब्रिजेस” थीम के तहत आयोजित इस कार्यक्रम का उद्देश्य कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) दृष्टिकोण को पुनर्परिभाषित करना और सहयोग व नवाचार के माध्यम से स्थायी स्वास्थ्य प्रभाव को बढ़ावा देना था।
करीब 100 प्रतिभागियों ने विभिन्न पृष्ठभूमियों से इस मीट में भाग लिया। इस दौरान स्वास्थ्य सेवा में CSR फंडिंग को अधिक प्रभावी बनाने और मौजूदा चुनौतियों, जैसे फंड का सही आवंटन न होना और सीमित पहुंच, पर चर्चा की गई। विशेषज्ञों ने यह बात मानी कि भारत में 85% लोग स्वास्थ्य साक्षरता (हेल्थ लिटरेसी) से वंचित हैं। इसलिए CSR फंड का उपयोग जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य जागरूकता और शिक्षा बढ़ाने के लिए किया जाना चाहिए।
कार्यक्रम में चर्चा करते हुए, डॉ. अनुप मिश्रा, पद्मश्री पुरस्कार विजेता और चेयरमैन, फोर्टिस C-DOC हॉस्पिटल फॉर डायबिटीज एंड एलाइड साइंसेज, ने कहा, “भारत में मेडिकल रिसर्च को आगे बढ़ाने के लिए CSR फंडिंग बहुत महत्वपूर्ण है। कॉर्पोरेट्स को ICMR जैसे संगठनों के नेतृत्व वाले रिसर्च क्षेत्रों में सक्रिय रूप से निवेश करना चाहिए ताकि गंभीर स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान किया जा सके। CSR फंड के उपयोग में नैतिकता को प्राथमिकता देना जरूरी है। कॉर्पोरेट्स को इन चर्चाओं में अधिक सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए, ताकि फंड का सही उपयोग समुदायों के लाभ के लिए हो।”
डॉ. मोहसिन वली, पद्मश्री पुरस्कार विजेता और सीनियर कंसल्टेंट, सर गंगा राम हॉस्पिटल, ने कहा, “भारत में 85% लोगों में स्वास्थ्य साक्षरता का स्तर कम है, जिसे तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है। CSR फंडिंग के माध्यम से जागरूकता पहल चलाकर इस खाई को पाटा जा सकता है, जिससे समुदायों को स्वस्थ जीवन जीने के लिए सशक्त बनाया जा सके। CSR गांधीवादी आदर्शों को दर्शाता है और इसे प्रभावी परिणामों के लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप में शामिल होना चाहिए। CSR मानवता की सेवा करने की भावना है। HEAL फाउंडेशन द्वारा शुरू की गई ‘निरोग नगरपालिका’ जैसी पहल जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य सुधार को बढ़ावा दे सकती है।”
HEAL फाउंडेशन के संस्थापक और चेयरमैन, डॉ. स्वदीप श्रीवास्तव, ने इस कार्यक्रम के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा, “हमारा उद्देश्य स्वास्थ्य-केंद्रित CSR खर्च, जो वर्तमान में ₹25,000 करोड़ है, को प्रेरित करना और इसे सबसे कमजोर वर्ग तक पहुंचाना है, जिससे भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर स्थायी प्रभाव डाला जा सके।”
मीट के दौरान, श्री अश्वनी महाजन, पूर्व प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय और स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक, ने कहा, “CSR का हमारी संस्कृति में गहरी जड़ें हैं। नीति सुधारों की आवश्यकता है ताकि CSR फंड जरूरतमंदों तक पहुंचे और वास्तविक सामाजिक कल्याण को बढ़ावा दिया जा सके। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि CSR योगदान प्रभावी ढंग से उन लोगों तक पहुंचे, जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है।”
डॉ. नरेंद्र सैनी, पूर्व मानद अध्यक्ष, IMA, ने भविष्य के संकटों से निपटने में CSR की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा, “मेडिकल शिक्षा और रिसर्च दोनों को CSR फंडिंग की आवश्यकता है। 2050 तक एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) के कारण एक बड़ा संकट उत्पन्न हो सकता है, जिसमें 1 करोड़ लोगों की जान जाने की संभावना है। CSR इन वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थितियों को कम करने में मदद कर सकता है।”
डॉ. करण ठाकुर, ग्रुप सस्टेनेबिलिटी लीड, अपोलो हॉस्पिटल्स, ने CSR फंड एग्रीगेटर की वकालत करते हुए कहा, “CSR संसाधनों को केंद्रीकृत करने से प्रयासों को सुव्यवस्थित किया जा सकता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि फंड का उपयोग प्रभावी ढंग से स्वास्थ्य सुधार के लिए हो। CSR को नीति निर्माताओं की प्राथमिकताओं में शामिल किया जाना चाहिए।”
मीट का समापन इस संदेश के साथ हुआ कि सभी लोग मिलकर ऐसे नए समाधान बनाएं, जो CSR को भारत में बेहतर और टिकाऊ स्वास्थ्य सेवा का आधार बना सके।